Thursday, September 26, 2013

Dekha hai..

मौत को बोहोत दूर से बोहोत करीब आके, पलट के जाते हुए देखा है. आँखों में दर्द पलट के ख़ुशी को आते हुए देखा है…
देखा है वो नज़ारा जिसे कहते है घूमते वक़्त का पहिया, जो रुकता कभी नहीं, इन्सान को पहिये सा घूमता देखा है
देखा है वो अँधेरा, जो छा जाता है आखरी वक़्त पे, उस अँधेरे को छटते हुए, रौशनी को पलट के आते हुए देखा है
ख़ामोशी कि ज़रा आवाज़ तो सुनो,
शांत और कितनी खुश है वो,
छिपाया है इसने कितने तूफ़ानो को गिनो
और फिर इसमें सिर्फ ख़ामोशी से खो जाओ.. 
जीते जी जितनी खुशियाँ अपने दामन में समेट ले, वो तेरी है
जिंदगी तो घर बार, रिश्तेदार क्या, साँसे भी तेरी समेट लेती है

khamoshi ki zara awaz toh suno..shant aur kitni khush hai wo..chipaya hai isne kitne toofano ko gino..aur fir isme sirf khamoshi se kho jao

jite ji jitni khushiya apne daaman me samet le, wo teri hai.. jindagi toh ghar baar, rishtedaar kya, saanse bhi teri samet leti hai..
..to bo coninued..