Saturday, December 22, 2012

फिर से ?

फिर से सभी रह गए हैरान - परेशान, आई कहीं दूर अभी एक चीख से
ये खुशियां खो गयी शरमाके - घबराके, उसके फटे - नगन एक चीर से

फिर से द्वापर युग की रानी द्रौपदी नहीं, इस बार ये आवाज़ है आई, एक कन्या साधारण से
क्या कुछ भी नहीं सीखा हमने, अपनी उस घमासान महाभारत से

फिर से एक बार है शर्मसार, वतन का हर समाज, देश-विदेश से
कब तक चीखें आयेंगी, मेरे रानी झाँसी के उस देश से

फिर से ना जाने कितने विशवास, अविश्कार और चमत्कार खोये रहेंगे, अँधेरे में घिरे रहेंगे डर से
कब तक घर में रहेंगि वो,  यूँ झुके - छुपे और दबे हुए शीश से

फिर से जीने की अदा है जिसने सिखलाई, आज करें अदा फ़र्ज़, फिर माँ के उस दूध से
चलो करें अदा, मांगी है हमने जो हर मुराद उस माँ शेरावाली से

फिर से कुछ बदलना होगा, नहीं और अब सहना होगा, और नहीं अब डरना होगा, किसी दुर्योधन से
चलो जुटें और करें यतन, रखे याद वतन, चलो निभाएं हर कतरा रानी झाँसी के उस खून से

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